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चंद्र मोहन जैन से Osho तक का सफर

चंद्र मोहन जैन से Osho तक का सफर

Gaahim

चंद्र मोहन जैन से ओशो तक का सफर

अध्यात्म जगत में चर्चित नाम ओशो (Osho) असल में चंद्र मोहन जैन के नाम से जाने जाते थे. उनका जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के कुचवाडा गांव में हुआ था. वह अपने माता-पिता की ग्यारह संतानों में सबसे बड़े थे.

बचपन और शिक्षा

ओशो के माता-पिता जैन धर्म के तेरापंथी दिगंबर संप्रदाय से थे. बचपन में उन्हें सात साल की उम्र तक ननिहाल में रखा गया. कहा जाता है कि बचपन से ही वह धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों में रुचि रखते थे. उन्होंने सागर यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की. उस दौरान वह अपने तीखे ज्ञान और बेबाक बोलने के लिए जाने जाते थे.

आध्यात्मिक यात्रा

1953 में उन्हें एक गहन आध्यात्मिक अनुभव हुआ, जिसके बाद उन्होंने अध्यापन का रास्ता चुना. वह दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में कार्यरत रहे. 1960 के दशक में उन्होंने आचार्य रजनीश के नाम से सन्यास ग्रहण किया और आध्यात्मिक प्रवचन देना शुरू किया. उनके प्रवचन गहन दार्शनिक विषयों को सरल शब्दों में समझाने के लिए जाने जाते थे. वह समाज में जड़ धारणाओं को चुनौती देते थे, जिस कारण उन्हें विवादों का भी सामना करना पड़ा.

ओशो कम्यून

1974 में उन्होंने पुणे में एक आश्रम की स्थापना की, जिसे बाद में कम्यून के रूप में जाना गया. यह कम्यून ध्यान, अध्यात्म और आत्म-विकास के केंद्र के रूप में विकसित हुआ. विदेशियों सहित दुनिया भर से लोग उनके दर्शन और सत्संग के लिए आते थे.

विवाद और विदेश प्रवास

1980 के दशक में ओशो के कम्यून पर कई विवाद उठे, जिनमें से कुछ काफी गंभीर थे. इसके बाद उन्हें अमेरिका में एक कम्यून स्थापित करने का प्रयास किया, लेकिन वहां भी विवादों का सामना करना पड़ा और उन्हें वापस भारत लौटना पड़ा.

बाद के वर्ष और मृत्यु

वापसी के बाद ओशो कम्यून का नाम बदलकर ध्यान आश्रम कर दिया गया. 1990 में 58 वर्ष की आयु में ओशो का पुणे के आश्रम में ही निधन हो गया. उनकी मृत्यु का कारण हृदय गति रुकना बताया गया.

विरासत

ओशो एक विवादास्पद गुरु रहे हैं, जिनके समर्थक और आलोचक दोनों हैं. उनके समर्थक उन्हें आध्यात्मिक गुरु और ज्ञानी के रूप में मानते हैं, वहीं आलोचक उनके तरीकों और विचारों पर सवाल उठाते हैं. फिर भी, ओशो के प्रवचन और किताबें आज भी दुनिया भर में पढ़ी और सुनी जाती हैं. उन्होंने ध्यान और आत्म-विकास पर लोगों की सोच को प्रभावित किया है.


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