हिमालय की तराई में बसा छोटा सा गांव शांत था, लेकिन वहां रहने वाली किरण की जिंदगी तूफान से कम नहीं थी। बचपन से ही कला में निपुण किरण का सपना एक प्रसिद्ध मूर्तिकार बनना था। पत्थरों को तराश कर वो उनमें जान डाल देती थी, पर उसके पिताजी, एक साधारण किसान, उसकी कला को सिर्फ मनोरंजन मानते थे। उनका मानना था कि खेती ही एकमात्र ठोस भविष्य है।हर दिन किरण को संघर्ष करना पड़ता। सुबह खेतों में काम करती और शाम ढलते ही चुपके से नदी किनारे जाकर पत्थर तराशती। एक दिन, गांव के प्रधान ने किरण की कला को देखा तो दंग रह गए। उन्होंने किरण को राज्य कला प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। किरण खुशी से झूम उठी, ये था उसका सपना साकार होने का पहला मौका।
प्रदर्शनी का दिन आया। किरण ने अपनी बेहतरीन मूर्ति प्रदर्शित की। मूर्ति एक साधारण सी किसान महिला की थी, जो सूर्योदय के सामने खड़ी होकर नई फसल के लिए प्रार्थना कर रही थी। किरण ने उस मूर्ति में इतनी भावनाएं उकेरी थीं कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए।लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। पुरस्कार समारोह में किरण का नाम नहीं आया। विजेता घोषित हुआ एक प्रसिद्ध मूर्तिकार, जिसने संगमरमर से बनी एक जटिल आकृति बनाई थी। किरण का दिल टूट गया। हार का बोझ उसके कंधों पर भारी पड़ने लगा। उदास होकर वो गांव वापस लौटी।उस शाम, खेतों में काम करते हुए किरण को दूर से एक गाना सुनाई दिया। वो पहाड़ों की ओर गई, जहां एक बूढ़ा लोहार लोहे को हथौड़े से पीट रहा था। लोहार ने किरण को देखा तो मुस्कुराया और कहा, "बेटी, इतनी उदास क्यों हो?"किरण ने सारा वाक्या बताया। लोहार ने धीमी आवाज में कहा, "बच्ची, हार जीत का हिस्सा है। लोहे को तपाकर, हथौड़े से पीटकर ही उसमें मनचाहा आकार लाया जाता है। हार वो चोट है जो तुम्हें और मजबूत बनाएगी।"
लोहार ने हथौड़े से चिंगारी निकालते हुए कहा, "देखो, ये छोटी सी चिंगारी जंगल को जला सकती है। हार को जुनून की आग में बदल दो। और हार मत मानो, कड़ी मेहनत करो।" लोहार के शब्दों ने किरण को झकझोर दिया। वो वापस लौटी तो एक नई ऊर्जा से भरकर। उसने अपनी कला को और निखारा। नई तकनीकें सीखीं और पुरानी परंपराओं को अपनाया। साल भर की कड़ी मेहनत के बाद वो फिर से राज्य कला प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए तैयार थी। इस बार किरण की मूर्ति ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। उसने एक विशाल चट्टान को तराश कर उसमें एक पहाड़ को उकेरा था। पहाड़ की चोटी पर एक छोटा सा पौधा उग रहा था। हर कोई समझ गया, ये मूर्ति दृढ़ संकल्प की कहानी कह रही थी। इस बार किरण विजेता बनी। पुरस्कार लेते हुए किरण ने कहा, "ये जीत मेरी नहीं, उन पहाड़ों की है, जो हार के बाद भी मजबूती से खड़े रहते हैं। ये जीत उस लोहार की है, जिसने मुझे हार को जीत में बदलना सिखाया।" किरण की कहानी पूरे देश में फैल गई। वो एक प्रसिद्ध मूर्तिकार बन गई