एक छोटे से शहर सिकंदराबाद की गलियों से निकलकर पूरे देश का हीरो बनने का सफर आसान नहीं था. ये कहानी है सुनील छेत्री की, भारतीय फुटबॉल के जादुई खिलाड़ी और कप्तान की.
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
1984 में जन्मे सुनील का बचपन फुटबॉल से सराबोर था. गली के कंकड़ वाले मैदान से लेकर स्कूल की टीम तक, हर जगह उन्हें बस गोल दागने का जुनून था. लेकिन राह आसान नहीं थी. फुटबॉल को करियर के रूप में चुनना उस समय कायदे से बाहर की बात मानी जाती थी. परिवार की आर्थिक स्थिति भी चुनौती थी.
पर सुनील के जज्बे को ये रुकावटें कमजोर नहीं कर सकीं. वह दिल्ली पहुंचे और वहां क्लब फुटबॉल में अपना नाम बनाया. 2002 में मोहन बागान के लिए खेलते हुए उन्होंने पेशेवर फुटबॉल की दुनिया में कदम रखा.
गोल मशीन और राष्ट्रीय टीम में एंट्री
अपनी रफ्तार और गोल दागने की कला से सुनील जल्द ही छा गए. उन्होंने भारत की जूनियर और अंडर -23 टीमों का प्रतिनिधित्व किया. 2005 में उन्हें राष्ट्रीय टीम में शामिल किया गया.
यहां से शुरू हुआ एक शानदार सफर. सुनील ने एक के बाद एक गोल दागकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया. 2008 में एएफसी चैलेंज कप की जीत में उनकी अहम भूमिका रही. इस टूर्नामेंट में उन्होंने शानदार दो गोल भी किए.
विदेशी सफर और वापसी
कुछ समय के लिए सुनील विदेशी लीग में भी गए. वह अमेरिका के कैनसस सिटी विजार्ड्स के लिए खेले, हालांकि वहां उन्हें ज्यादा मौके नहीं मिले. फिर वह भारत लौट आए और घरेलू लीग में धमाल मचाते रहे.
बेंगलुरु FC और कप्तानी
2013 में सुनील बेंगलुरु FC से जुड़े. यह क्लब उनके करियर का turning point बना. उन्होंने क्लब को कई सफलताओं दिलाईं, साथ ही लगातार राष्ट्रीय टीम के लिए भी शानदार प्रदर्शन करते रहे.
2017 में उन्हें टीम का कप्तान बनाया गया. कप्तान के रूप में भी उनकी अगुवाई में भारतीय फुटबॉल को नई ऊंचाइयां मिलीं.
एक रिकॉर्ड तोड़ सफर
सुनील ने रिकॉर्ड्स बनाना अपना नियम बना लिया है. वह भारत के लिए सबसे ज्यादा मैच खेलने वाले और सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी हैं. साथ ही वह दुनिया के सक्रिय खिलाड़ियों में सबसे ज्यादा गोल करने वालों में से भी एक हैं.
उन्हें 2011 में अर्जुन अवॉर्ड, 2019 में पद्म श्री और 2021 में देश के सर्वोच्च खेल सम्मान - खेल रत्न से सम्मानित किया गया.
सपनों का कैप्टन
सुनील छेत्री सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं हैं, वह पूरे देश के लिए प्रेरणा हैं. उन्होंने दिखाया है कि जुनून और मेहनत से कोई भी सपना हासिल किया जा सकता है.
आज हर भारतीय बच्चे का सपना है कि वह "सपनों का कैप्टन" बने, बिल्कुल वैसे ही जैसे सुनील छेत्री
